महान वैज्ञानिक न्यूटन की जिज्ञासा के जुनून और एकाग्रता की कहानी
सूर्य नारायण ठाकुर
भूतपूर्व भौतिकी प्रोफेसर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय
जब कभी भी न्यूटन का नाम सामने आता है, हमारे मस्तिष्क में एक अत्यन्त दिव्यमान पुरुष की आकृति उभरती है जिसकी तुलना किसी देवता से की जा सकती है। ऐसा लगता है कि जिस व्यक्ति द्वारा प्रकृति के अनेक रहस्यों का पर्दाफाश किया गया उसे जन्म से ही दिव्य दृष्टि प्राप्त रही होगी। जब अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियों को हासिल करने के बाद किसी ने न्यूटन से पूछा कि आपने सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण (Universal Gravitation) का सिद्धांत कैसे प्रतिपादित किया तो उनका जबाब था, "उसके बारे में लगातार सोच सोच कर, और उस क्षण का इंतजार करते हुए जब तक धीरे धीरे सभी बातें स्पष्ट नहीं हो गईं।" न्यूटन के इस उत्तर से यह कल्पना करना कठिन है कि एक व्यक्ति अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए एकाग्रता की मूर्ति बनकर तब तक पढ़ता और सोचता रह सकता है जब तक उसे सफलता नहीं मिल जाती। इस लेख में हम न्यूटन के जीवन के एक ऐसे पक्ष का दिग्दर्शन करने वाले हैं जिसमें बचपन की कठिन परिस्थिति के प्रति असंतोष है, किशोरावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक जिज्ञासु जुनून है और समय समय पर देवदूत के रूप में आकर कुछ लोग जिज्ञासा के जुनून को सफलता के शीर्ष पर पहुंचाने में मददगार सिद्ध होते हैं।
अंतर्मुखी बाल्यावस्था
इंग्लैंड में १७वीं सदी में जूलियन कैलेंडर का प्रचलन था जिसके अनुसार आइजेक न्यूटन (Isaac Newton) का जन्म क्रिसमस की सुबह 25 दिसम्बर 1642 को लिंकनशायर (Lincolnshire) में कोलस्टर वर्थ (Colsterworth) गांव के वुलस्थोरप मनोर (Woolsthorpe Manor) में हुआ था। 24-25 पूर्णिमा की रात थी और न्यूटन का जन्म आधी रात के करीब दो घंटे बाद हुआ था। न्यूटन का गांव प्रसिद्ध कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से 60 मील उत्तर - पश्चिम में स्थित है। जन्म के तीन महीने पूर्व ही अक्टूबर में इनके पिता (जिनका नाम भी आईजेक न्यूटन था) की मृत्यु हो गई थी । बालक आइजैक की पैदाइश समय से पूर्व हो गई थी और वे इतने कमजोर थे कि एक दिन भी जीवित रहने की संभावना नहीं थी। भगवान की कृपा से न्यूटन ने 84 वर्ष तक का स्वस्थ जीवन व्यतीत किया। मात्र तीन साल की उम्र में इन्हे नानी के पास छोड़कर 1646 में इनकी मां हाना आइस्काफ (Hannah Ayscoughs) ने बरनबास स्मिथ (Barnabas Smith) से दूसरी शादी कर ली। 60 वर्षीय स्मिथ बगल के गांव नार्थ विथम (North Witham) के रहने वाले धनवान व्यक्ति थे और उन्होंने वुलस्थोरप मनोर के रख रखाव के लिए नानी मेंरी आइस्काफ़ (Mary Ayscoughs) की वित्तीय मदद भी किया था। मां से अलग होने के सदमें से न्यूटन जीवन भर नहीं उबर पाए तथा इसकी वजह से उनके स्वभाव में एक चिड़चिड़ापन और प्रतिहिंसक भावना घर कर गई। वह अपनी मां से बहुत प्यार करते थे जिसके प्रति उनके मन में घृणा का भाव नहीं था, मगर कम उम्र में उनसे बिछुड़ने का ऐसा दर्द था जो समय समय पर बेकाबू क्रोध के रूप में फूट पड़ता था। स्वर्गवासी पिता और बाल्यावस्था में मा के दूर हो जाने के प्रभाव ने न्यूटन को एक अंतर्मुखी बालक बना दिया था। वे घंटों अकेले बैठकर सुदूर आकाश के तारों को देखते और उनके बारे में भांति भांति की अटकलें लगाया करते थे।
स्मिथ और हाना के घर 1647 में एक लड़की मेरी, 1651 में लड़का बेंजामिन तथा 1652 में दूसरी लड़की हाना पैदा हुई, मगर 1653 में स्मिथ की मृत्यु के बाद न्यूटन की मां सबको लेकर वापस वुलस्थोरप मनोर में रहने लगीं। दस वर्ष की अवस्था होने तक न्यूटन में अपने करीबी लोगों के प्रति स्नेह की भावना गायब हो गई थी। वे न तो अपने नाना नानी से, नहीं मां या सौतेले पिता से और नहीं सौतेले भाई बहनों से किसी प्रकार का लगाव महसूस करते थे। बाहरी लोगों को न्यूटन एक शांत, सौम्य और चिंतनशील बालक लगते थे मगर कभी कभी उनके गुस्से का आवेश फूट पड़ता था। इसी प्रकार की एक स्थिति में उन्होंने अपनी मां और सौतेले पिता को घर में ही जला देने की धमकी भी दिया था। घर के धार्मिक माहौल में न्यूटन ईश्वर वादी हो गए और जीवन पर्यन्त किसी भी समस्या के समाधान के लिए बाइबिल का सहारा लेते रहे। अपनी धार्मिक विचारधारा के कारण उन्हें लगता था कि ईश्वर ने ब्रह्माण्ड की रचना किसी खास उद्देश्य से किया है और इसकी प्रकृति की जानकारी करना न्यूटन के लिए जरूरी था।
स्कूली छात्र-जीवन और ढाई-पेन्नी की नोटबुक
बारह वर्ष की अवस्था में न्यूटन ने ग्रांथम (Grantham) के ग्रामर स्कूल से अपने छात्र जीवन की शुरुआत किया जो उनके गांव से 7-8 मील की दूरी पर स्थित था। इसके लिए उन्हें क्लार्क (Clark) नामक दवा बेचने वाले एक व्यक्ति के घर किरायदार के रूप में रहना पड़ा। क्लार्क के घर में बहुत सी किताबें थीं और बालक न्यूटन को किताबें पढ़ने का चस्का लग गया। उस समय के स्कूल में मुख्य रूप से लैटिन और ग्रीक भाषा की पढ़ाई होती थी और गणित बहुत कम पढ़ाया जाता था। ग्रामीण परिवेश के शांत और संवेदनशील बालक न्यूटन का मन स्कूल की पढ़ाई में नहीं लगता था और जल्दी ही उनकी गिनती कक्षा के सबसे कमजोर विद्यार्थियों में होने लगी।
न्यूटन ने खुद इस बात को स्वीकार किया कि उनकी सुप्त बौद्धिक अवस्था का उस दिन अंत हुआ जिस दिन स्कूल के सबसे बदमाश लडके ने उनके पेट में लात मारी थी। क्रोध में आकर अपने से मजबूत साथी को उन्होंने चर्च के मैदान में लड़ने के लिए ललकारा। सबसे पहले उनकी जीवनी लिखने वाले जॉन कंड्यूट (John Conduit) के अनुसार यद्यपि न्यूटन अपने प्रतिद्वंदी की अपेक्षा शारीरिक रूप से कमजोर थे लेकिन उनका जोश और संकल्प इतना ऊंचा था कि वे उस बदमाश लड़के को तब तक मारते रहे जब तक उसने खुद हार नहीं मान लिया। इसके बाद भी न्यूटन का गुस्सा शांत नहीं हुआ और वह लड़के का कान पकड़कर चर्च की दीवार से उसकी नाक रगड़ने लगे। प्रतिद्वंद्वी के समक्ष अपनी शारीरिक श्रेष्ठता ही सिद्ध करना काफी नहीं था और जल्दी ही न्यूटन बौद्धिक रूप में भी बहुत आगे निकल गए। इस प्रकार की गुस्से से भरी प्रतिशोधी घटनाएं न्यूटन के जीवन में बार बार आती रहीं जिसकी शुरुआत स्कूल में हुई थी।
चित्र 1. सत्रहवीं सदी के इंग्लैंड में प्रचलित एक पेन्नी (Penny) का सिक्का
उपरोक्त घटना के बाद जब न्यूटन की मानसिक क्षमता जाग्रत हो गई तो फिर उसने रुकने का नाम नहीं लिया। किशोरवय के आइजैक में वे सब गुण दिखाई देने लगे जो अप्रतिम प्रतिभा के द्योतक हैं। उन्होंने पवन चक्की के माडल, हवा में आवाज करने वाली पतंग, पानी की घड़ी, कागज की लालटेन तथा भांति भांति के खिलौने बनाकर लोगों को चकित कर दिया। वे सूर्य के प्रकाश में परछाईं देखकर समय बता देते थे और एक नोटबुक में अनेक प्रकार के चित्र बनाते तथा घटनाओं का विवरण लिखते थे। सौभाग्य से उनकी यह नोटबुक न्यूयॉर्क के पियारपंत मार्गन (Pierpont Morgan) लाइब्रेरी में उपलब्ध है। इस नोटबुक की सामने के कवर के पीछे न्यूटन ने लिखा है कि 1659 में इसे ढाई पेन्नी में खरीदा गया था। इसमें ग्रांथाम में रहने वाले कुछ विचित्र प्रकार के लोगों का विवरण है, सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की ज्योतिषी भविष्यवाणी का विवरण है, तथा कुछ समस्याओं के बारे में जानकारी की उत्कंठा व्यक्त की गयी है। कोपरनिकस के सौर मण्डल का चित्र है और धूप घड़ी बनाने की पूरी विधि लिखी गई है। इस नोटबुक को देखने से लगता है कि न्यूटन की बौद्धिक उत्कंठा का विस्तार उस समय के स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा की सीमा से बहुत आगे बढ़ गयी थी। विज्ञान में उनकी अभिरुचि बहुत बढ़ गई थी और वे यह जानकारी करना चाहते थे कि चीजें कैसे काम करती हैं। जिस वर्ष में न्यूटन ने ढाई पेन्नी की नोटबुक खरीदा उसी साल में उनकी मां ने उन्हें खेती का काम देखने के लिए वापस घर बुला लिया था।
सत्रह वर्षीय न्यूटन एक कृषक के रूप में बिलकुल बेकार साबित हुए। जब उन्हें फार्म में रखे गए भेंडों और सूअरों को चराना होता था तो वे किताब लेकर किसी पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ने में मशगूल हो जाते थे। इस बीच उनके पालतू पशु अपने खेत की सीमा पर बनी बाड़ को तोड़ कर पड़ोसी के खेत में लगी मक्के की फसल को बर्बाद करने लगते थे। उनके खेत की बाड़ टूटकर जीर्ण शिर्ण हो जाने के कारण उन्हें कानूनी नोटिस मिली तथा चार शिलिंग और चार पेन्नी का जुर्माना भरना पड़ा। इस प्रकार स्कूली प्रमाण पत्र की जगह उनकी योग्यता एक अपराधी के रूप में दर्ज हुई। इन घटनाओं से एक बात साबित हो गई कि विज्ञान के प्रति उनका जुनून एक लत के रूप में उभर गया था और यह ज्वार बिना कम हुए लगातार अगले 37 वर्षों तक कायम रहा। न्यूटन ने अपने पढ़ने, वैज्ञानिक प्रयोग करने तथा अपनी नोटबुक में अपने ज्ञान को दर्ज करने का काम लगातार जारी रखा।
सौभाग्य से दो लोगों ने न्यूटन को खेती के काम से छुटकारा दिलाने में अहम भूमिका निभाई। न्यूटन के मामा विलियम ऑस्काफ (William Ayscough) बगल के गांव में पादरी थे और ट्रीनिटी कालेज कैम्ब्रिज से ग्रेजुएट थे। जान स्टोक (John Stokes) ग्रंथाम स्कूल के मास्टर थे और न्यूटन की प्रतिभा से वाकिफ थे। दोनों लोगों ने मिलकर न्यूटन की मां को इस बात के लिए राजी कर लिया कि उन्हें वापस ग्रांथम्म स्कूल भेज दिया जाय जहां स्टोक्स उनकी ट्रीनिटी कालेज में दाखिला के लिए तैयारी कराएंगे। न्यूटन एक बार फिर क्लार्क के घर किरायेदार के रूप में रह कर अपनी पढ़ाई में तल्लीन हो गये।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रवेश
जून 1661 में न्यूटन ने अठारह वर्ष की उम्र में ट्रीनिटी कालेज में दाखिला लिया जहां वे अपने सहपाठियों की अपेक्षा दो वर्ष बड़े थे। वे अपने सहपाठियों की अपेक्षा अधिक गरीब भी थे और उनका नामांकन (admission) एक स्कालरशिप छात्र के रूप में हुआ था। स्कालरशिप छात्र को अपने ट्यूटर के नौकर के रूप में काम करना पड़ता था। सौभाग्य से न्यूटन के ट्यूटर, ट्रीनिटी कालेज में साल भर में केवल पांच हप्ते ही रहते थे अत: उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए काफी समय मिल जाता था।
सत्रहवीं सदी का मध्य (mid 17th century), इंग्लैंड में एक बौद्धिक क्रांति का समय था जिसमें कई नामचीन लोग देश का मान बढ़ा रहे थे। हार्वे (Harvey) ने मानव शरीर में रक्त संचार की खोज द्वारा मेडिकल साइंस में आधुनिक युग की शुरुआत की थी, वहीं हेली (Halley) ने पुच्छल तारे की खोज द्वारा धूम मचा दिया था जिसका नामकरण बाद में हेली कामेट हुआ। ब्यायल (Boyle) रसायन विज्ञान की नींव रख रहे थे, हॉब्स (Hobbes) की गिनती उस समय के सबसे अनुभवी राजनीति के विशेषज्ञों में हो रही थी जबकि एक फिलासफर के रूप में लॉकी ने अपने अनुभववाद (Empirism) द्वारा एक नई दिशा दिखाया था, जिनके विचारों के आधार पर संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान (Constitution) का निर्माण हुआ। इंग्लैंड में उपरोक्त जागरण के बावजूद वहां के विश्वविद्यालयों की शिक्षा का स्तर दयनीय था क्योकि वह मध्य कालीन अरस्तुवाद (Aristotelean) पर आधारित था। अभी भी पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के केंद्र में स्थिर माना जाता था और हरेक चीज का निर्माण चार तत्वों - पृथ्वी (earth), हवा (air), अग्नि (fire), और जल (water), से हुआ माना जाता था।
17वीं सदी में, अरस्तुवादी धारणा की समाप्ति की ओर पहला कदम यूरोप की तरफ से बढ़ाया गया था। पोलैंड के पादरी कोपरनिकस (Copernicus) ने 17वीं सदी के शुरू में सूर्य केंद्रित सौर मण्डल की धारणा का प्रतिपादन किया जिसके आधार पर काम करते हुए प्राग (Prague। के जर्मन खगोलशास्त्री केप्लर (Kepler) ने ग्रहों की गति के तीन नियमों की रचना की। इटली के भौतिक विज्ञानी गैलीलियो (Galileo) ने अपने वैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर नई यांत्रिकी (Mechanics) की रचना किया जिसको उन्हें कैथोलिक चर्च के दबाव में छोड़ देना पड़ा। इसी बीच रेन दीकर्त (Rene Descartes) ने शक की धारणा को प्रतिपादित करते हुए विश्लेषण और अनुभव की कसौटी द्वारा यह दिखला दिया कि विज्ञान की शिक्षा में बहुत सी खामियां थीं।
यूरोप के प्रथम अन्वेषकों की उपस्थिति से भी इंग्लैंड में बौद्धिक क्रांति को बल मिल रहा था जिसका सीधा प्रभाव नवयुवक न्यूटन पर पड़ रहा था। वे नई वैज्ञानिक खोजों को समझने के लिए गणित के क्षेत्र में होने वाले बदलाव को तन मन से सीखने लगे थे, क्योकि भविष्य की वैज्ञानिक खोज इन्हीं के आधार पर होने वाली थीं। गणित में भी यह क्रांति का समय था जो विज्ञान में होने वाली नित्य नई खोजों के समानांतर चल रहा था। 17वीं सदी के मध्य में तीन महान गणितज्ञ -दीकर्त (Descartes), फार्मा (Fermat) और पास्कल (Pascal) अपनी बौद्धिक क्षमता के शीर्ष पर चल रहे थे। अपनी बैचलर डिग्री की पढ़ाई के दौरान न्यूटन ने दीकर्त के द्वारा इजाद किये गए कार्टेजियन सिस्टम (Cartesian System) को खूब अच्छी तरह से आत्मसात कर लिया। इस सिस्टम में तीन परस्पर लंबवत अक्षों के द्वारा अंतरिक्ष में स्थित किसी भी बिन्दु का अत्यन्त सटीक मापन किया जा सकता था चाहे वह बिंदु किसी भी रेखा, वक्र या सतह पर स्थित हो। अब बीजगणित (Algebra) के अलावा वैश्लेशिक ज्यामिति (Analytic Geometry) का प्रयोग होना शुरु हो गया था और किसी भी वक्र को कार्तेजियन निर्देशांकों (Coordinates) द्वारा एक समीकरण के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता था। उदाहरण के तौर पर अक्ष Y वाले पैराबोला को x और y निर्देशांकों के माध्यम से निम्न रूप से प्रदार्शित किया जा सकता है: y = x२
न्यूटन का अपने क्रिया कलापों को लिखने का जो सिलसिला स्कूल में शुरू हुआ था वह युनिवर्सिटी में भी कायम रहा। उनकी नई नोटबुक का शीर्षक था: "Certain Philosophical Questions" और आगे लिखा था: "My best friend is truth"। इस प्रकार हम देखते हैं कि न्यूटन ने दीकर्त (Descartes) की इस अवधारणा को मान लिया था कि जो कुछ भी वास्तविक लगता है वह पदार्थ के कणों की गतिशीलता(motion of particles) की वजह से है और प्रकृति में जो भी घटनाएं घटित होती हैं उनका मूल कारण इन कणों के बीच परस्पर क्रिया का होना है। न्यूटन के नोटबुक से यह भी पता चलता है कि वे ब्यायल के रसायन विज्ञान की नवीनतम शोध से भी वाकिफ थे जहां पर मूल रासायनिक तत्वों के बारे में जानकारी मिलनी शुरू हो गई थी।
कैम्ब्रिज में तीन वर्ष पूरा होते होते न्यूटन ने गणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देना शुरु कर दिया था। उन्होंने भिन्न या अंश के लिए बाइनोमियल (binomial) प्रमेय को प्रतिपादित किया जिसके उदाहरस्वरूप हम निम्न लिखित अनंत श्रृंखला प्रस्तुत कर सकते हैं:
(1+x)½ = 1 + (1/2)x - (1/8) x2 + (1/16) x3 - (5/128) x4 + ……. (1)
इस प्रकार की अनंत श्रृंखला पर काम करना न्यूटन के लिए गणना (Calculus) के क्षेत्र में पहला कदम था और कालकुलस की खोज गणित की एक सर्वकालिक महान उपलब्धि है। न्यूटन ने जून 1665 में BA पास कर लिया।
चित्र 2. गैलीलियो द्वारा पीसा की टेढ़ी मीनार की छत से एक साथ फेकी गई भिन्न द्रव्यमान (mass) की एक समान दिखने वाली दो गेंद दो भिन्न पैराबोली प्रक्षेपणपथ (parabolic trajectories) पर चलते हुए एक ही समय में जमीन पर गिरी थीं
कालकुलस (Calculus) की रचना
न्यूटन ने कालकुलस (Calculus) को स्थापित करने के लिए ज्यामितीय गणित का उपयोग किया था जो काफी क्लिष्ट है। हम लोग यहां पर आधुनिक एवं सरल शैली का उपयोग करेंगे। गैलीलियो के पीसा की टेढ़ी मीनार से नीचे गिरने वाली गेंद के प्रयोग को ध्यान में रखते हुए उसके प्रक्षेपवक्र (trajectory) को निम्न रूप से दर्शाया जा सकता है:
s = ½ gt2 (2)
जहां t समय का द्योतक है, s गेंद द्वारा मीनार की छत से तय की गई दूरी है तथा g गुरुत्वाकर्षण जनित त्वरण (acceleration) है। समीकरण (2) में s को कर्टेजियन सिस्टम के Y अक्ष और t को X अक्ष पर प्रदर्शित करने में चित्र 2 में दिखाया गया गैलीलियो का पैराबोली प्रक्षेपवक्र प्राप्त होता है ।
न्यूटन ने कालकुलस के द्वारा यांत्रिकी की धारणा को व्यक्त करने का एक अदभुत तरीका ढूंढ निकाला था। किसी भी गति v को व्यक्त करने का अंतर समीकरण (differential equation) निम्नलिखित हुआ:
v = (ds/dt) (3)
यदि गति v में समय के साथ परिवर्तन हो रहा है तो उसे गति के व्युत्पन्न (dv/dt) द्वारा व्यक्त किया जायेगा। इस प्रकार त्वरण के लिए निम्नलिखित अंतर समीकरण होगा:
a = (dv/dt) (4)
जहां a त्वरण को दर्शाता है। गेंद के मुक्त रूप से गिरने की दशा में गति समय के साथ बढ़ती जाती है और इसे निम्नलखित रूप से व्यक्त किया जा सकता है:
v = gt (5)
इस प्रकार हम पाते हैं कि g मुक्त गिरावट (free fall) का त्वरण प्रदर्शित करता है जो गुरुत्वाकर्षण जनित त्वरण है।
न्यूटन ने 1665-67 के बीच बूबोनिक प्लेग की वजह से कैम्ब्रिज से दूर अपने गांव में रहते हुए, अकेले अपने बल पर गणितीय गणना के लिए श्रेणी एवं फ्लाक्सोंस की विधि (Method of series and fluxions) के नाम से कालकुलस के रचना की नींव डाली थी। इसी के आधार पर काम करते हुए उन्होंने अगले बीस वर्षों में, गति के नियम, चन्द्रमा की गति एवं पृथ्वी पर उसका प्रभाव एवं सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक (Universal Gravitational Constant) पर युगांतकारी शोध किए। बाद के जीवन में कुछ लोगों से बात करते हुए न्यूटन ने इस डेढ़ साल के समय को अपने शोध कार्य का स्वर्णिम काल बताया था।
प्रिज्म, स्पेक्ट्रम, और टेलीस्कोप
चित्र 3. सूर्य के प्रकाश की किरण शीशे के प्रिज्म से गुजरने के बाद मुख्य रूप से सात रंगों में विभक्त हो जाती है। जब इस रंगीन प्रकाश पुंज को उसी प्रकार के दूसरे मगर उल्टे रखे प्रिजम पर डाला जाता है तो बाहर निकलने वाली किरण पहले प्रिज्म पर पड़ने वाली किरण की तरह ही सफेद हो जाती है। {Adopted from Ref. 2)
न्यूटन द्वारा सूर्य की सफेद किरण को प्रिज्म के माध्यम से स्पेक्ट्रम के सात रंगों में विभक्त करने के समय वैज्ञानिक जगत में रंगों को लेकर कई प्रकार की भ्रांति फैली हुई थी। अरस्तुवाद के प्रभाव में यह मान्यता थी कि विभिन्न रंगों कि उत्पति प्रकाश (सफेद रंग) और अंधेरा (काला रंग) को भिन्न भिन्न अनुपात में मिलाने से होती है। कुछ लोगों का विश्वास था कि वर्षा का पानी सूर्य के सफेद प्रकाश को रंगीन कर देता है जिससे इन्द्रधनुष (rainbow) का निर्माण होता है । 17वीं सदी के आरंभ में आंख की बनावट तथा रंग और दृष्टि (colour and vision) के बारे में बड़ी तेजी से वैज्ञानिक शोध हुए। जर्मन खगोल वैज्ञानिक केप्लर ने 1604 में अपने प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि दृष्टि के लिए सबसे महत्वपूर्ण अंग आंख का लेंस नहीं है जो उस समय की सर्वमान्य धारणा थी। केप्लर के अनुसार लेंस आंख की भीतरी परत (रेटीना) पर प्रकाश को फोकस कर प्रतिबिंब बनाता है, जिस प्रकार पिनहोल कैमरा में छोटा सा छेद परदे पर बाहरी वस्तुओं का प्रतिबिंब बनाता है। उस समय के अमूर्त विचारक (abstract thinker) रेने दीकर्त (Descartes) ने केप्लर की खोज को बहुत महत्त्व नहीं दिया और कसाईखाने (slaughterhouse) से प्राप्त जानवरो की आंख पर प्रयोग द्वारा 1630 में यह निष्कर्ष निकाला कि दृष्टि के लिए आंख के भौतिक प्रभाव का आकलन मस्तिष्क द्वारा किया जाता है। दुर्भाग्यवश, दीकर्त भी अरस्तूवादी विचारधारा के प्रभाव में इस मत के थे कि प्रकाश का मूल रंग सफेद होता है और वह जिस माध्यम से होकर गुजरता है उसकी प्रकृति के अनुसार वह रंगीन हो जाता है। उस समय के प्रसिद्ध ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी राबर्ट हूक भी इसी मत के थे कि शुद्ध प्रकाश सफेद होता है और वस्तुओं द्वारा उसमे विकृति उत्पन्न हो जाने के कारण वह रंगीन हो जाता है।
न्यूटन उपरोक्त अरस्तुवादी विचारधारा से सहमत नहीं थे कि रंगों की उत्पत्ति प्रकाश और अंधेरे को मिलाने से अथवा सफेद और काले को मिलाने से होती है। यह धारणा प्रयोगों द्वारा सिद्ध नहीं होती थी। काली स्याही से प्रिंट की हुईं किसी किताब के किसी भी पेज पर काले और सफेद दोनों रंग होते हैं मगर दूर से देखने पर वह पेज रंगीन नहीं बल्कि धूसर (gray) दिखाई पड़ता है, यदपि उसमे काले और सफेद का मिश्रण होता है। बुबोनिक प्लेग की वजह से कैम्ब्रिज छोड़कर अपने गांव में रहते हुए 1666 में जब अपने प्रयोगों के लिए न्यूटन ने बाजार से शीशे का प्रिज्म खरीदा था, उस समय वह एक खिलवाड़ की वस्तु समझी जाती थी। इटली में वेनिशियन शीशे के बने प्रिज्म लोग अपने घरों में रंग बिरंगी चमक बिखेरने के लिए छत या दीवार पर टांग दिया करते थे। न्यूटन ने अपने गांव के अंधेरे कमरे में सूर्य की किरण और प्रिज्म के साथ बहुत से प्रयोग किए जिसमें अपवर्तन (refraction) के बाद सफेद प्रकाश प्रिज्म के दूसरी ओर लगे परदे पर रंग बिरंगी पट्टियों में फैल जाता था। यद्यपि ये रंगीन पट्टियां अविरल (continuous) थी जहां एक रंग और दूसरे रंग के बीच कोई स्पष्ट सीमा नहीं थी, फिर भी न्यूटन ने इनको, लाल (Red), नारंगी (Orange), पीला (Yellow), हरा (Green), नीला (Blue), गहरा नीला (Indigo), तथा बैंगनी (Violet), नाम से सात रंगो में बांट दिया जैसा चित्र 3 में दिखाया गया है। वास्तव में नारंगी (Orange) और गहरा नीला (Indigo) रंग स्पेक्ट्रम में नहीं दिखते हैं और न्यूटन ने संगीत के सात स्वरों (seven notes), [सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी] के तर्ज पर यह नामकरण किया था जो आजतक कायम है। क्या सफेद प्रकाश प्रिज्म के भीतर से गुजरने के कारण रंग बिरंगी हो जाता है? इस समस्या के समाधान के लिए न्यूटन ने रंग बिरंगे प्रकाश पुंज को एक उल्टे रखे हुए प्रिज्म पर डाला। समान रूप के इस दूसरे प्रिज्म से गुजरने के बाद फैला हुआ रंगीन प्रकाश पुंज एकाग्र होकर सफेद किरण में परिवर्तित हो गया जैसा वित्र 3 में दिख रहा है।
न्यूटन ने देखा कि प्रत्येक रंग के अपवर्तन कोण का मान अलग अलग था, लाल रंग के लिए सबसे बड़ा और बैंगनी रंग के लिए सबसे छोटा। चित्र 3 की तरह ही एक अन्य प्रयोग में रंग बिरंगे प्रकाश पुंज तथा उल्टे रखे प्रिज्म के बीच एक छोटे छेद वाली काली स्क्रीन लगा दी गई जिसके द्वारा केवल एक रंग का प्रकाश ही दूसरे प्रिज्म पर पड़े। यह देखा गया कि दूसरे प्रिज्म से निकलने के बाद भी प्रकाश के रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसी प्रकार एक वर्णी प्रकाश को कई प्रकार की वस्तुओ पर डाला गया और यह पता चला कि सफेद या हल्के रंग वाली वस्तुओ का रंग वहीं हो जाता है जिस रंग का प्रकाश उनके उपर पड़ता है। उपरोक्त विवरण के आधार पर न्यूटन ने यह निष्कर्ष निकाला कि सूर्य का सफेद प्रकाश मुख्य रूप से सात रंगों में विभक्त किया जा सकता है। अत: रंग प्रकाश का आंतरिक गुण है और कोई वस्तु वैसी ही दिखती है जिस रंग का प्रकाश उसके द्वारा परावर्तित (reflect) होता है [1] । प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश के रंगो में विभाजन की प्रक्रिया को न्यूटन ने कलर स्पेक्ट्रम (color spectrum) का नाम दिया जिसके द्वारा बाद के दिनों में स्पेक्ट्रास्कोपी (Spectroscopy) के रूप में भौतिक और रसायन विज्ञान के प्रसार में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। न्यूटन के इस महत्वपूर्ण योगदान के आधार पर उन्हें अक्टूबर 1667 में ट्रीनिटी कालेज का फेलो बना दिया गया और 1668 में उन्हें MA की डिग्री प्रदान की गई। उनके गुरु प्रोफेसर आइजेक बैरो, प्रकाश से संबन्धित प्रायोगिक कार्यों तथा कालकुलस के गणितीय योगदान से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने अपने लुकेशियन प्रोफेसर पद को छोड़ते समय इसी पद पर उनकी नियुक्ति में अहम भूमिका निभाई। न्यूटन को 19 अक्टूबर 1669 को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में गणित के लुकेशियन प्रोफेसर (Lucasian Professor) के प्रतिष्ठित पद पर आसीन किया गया।
सत्रहवीं सदी के मध्य तक खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हो गई थी। सुदूर स्थित तारों और अन्य आकाशीय पिंडों का अध्ययन करने के लिए बड़ी बड़ी टेलीस्कोप बनाई गईं थीं जिनकी लंबाई दो सौ फीट से भी अधिक थी। टेलीस्कोप की लंबाई में इस असाधारण बढ़ोतरी का कारण उनकी विभेदन क्षमता (resolving power) में वृद्धि करना था। तारों के घने समूह में दो पास पास स्थित तारों के प्रतिबिंब अलग अलग दिखें, इसके लिए लेंसों से बनी अपवर्तन के सिद्धांत पर काम करने वाली छोटी लंबाई की टेलीस्कोप सक्षम नही थी। बड़ी लंबाई की टेलीस्कोप में प्रतिबिंब धुंधला होने के साथ किनारे पर रंगीन हो जाते थे और यह लगने लगा कि इनकी विवेधन क्षमता में अब किसी प्रकार की बढ़ोतरी नहीं संभव है। लुकेशियन प्रोफेसर बनने के कुछ समय पहले 1668 में, न्यूटन का ध्यान टेलीस्कोप में खराब प्रतिबिंब बनने की समस्या पर केन्द्रित हुआ। अपने स्वभाव के अनुरूप वे एकाग्रचित्त दिन रात इस समस्या के समाधान के बारे में सोचने लगे थे। इस अनवरत सोच का परिणाम जब समाधान के रूप में सामने आया तो वह इतना सरल था कि न्यूटन की प्रतिभा का डंका बज गया। टेलीस्कोप की इस सरल और कारगर डिजाइन ने इसके बनाने कि टेक्नोलॉजी को सदा के लिए बदल कर रख दिया। सुदूर तारों से आने वाले प्रकाश कों एकत्रित करके प्रतिबिंब बनाने के लिए उन्होंने लेंस की जगह पैराबोली दर्पण इस्तेमाल करने का निश्चय किया। क्योंकि दर्पण द्वारा प्रतिबिंब बनने की प्रक्रिया में प्रकाश का परावर्तन होता है अत: लेंस द्वारा अवशोषण (absorption) के कारण प्रकाश के क्षीण होने की समस्या खतम हो जाती है जैसा चित्र 4 में दिखाया गया है। प्रिज्म द्वारा स्पेक्ट्रम बनाने के अनुभव के आधार पर न्यूटन ने यह विचार किया कि लेंस की आकृति के कारण उसकी किनारे और बीच की आसमान मोटाई प्रतिबिंब को रंगीन और धुधला कर रही होगी। इस प्रकार न्यूटन की नई डिजाइन में लेंस वाली टेलीस्कोप के प्रतिबिंब के धुंधला और रंगीन होने वाली दोनों ही समस्याओं का हल निकल गया।
गैलीलियो ने ग्रहों के निरीक्षण के लिए अपने एक प्रशिक्षित सहायक की मदद से टेलीस्कोप बनाया था, मगर न्यूटन ने एक कदम आगे बढ़ते हुए बिना किसी की मदद के अकेले ही अपनी टेलीस्कोप बनाने का निश्चय किया। उन्होंने खुद ही दर्पण की ढलाई किया, टेलीस्कोप की ट्यूब बनाया तथा उसका पूरा ढांचा खड़ा किया। पूरी तरह से तैयार होने के बाद एक इंच व्यास और छ: इंच लंबाई वाली इस टेलीस्कोप की आवर्धन क्षमता तीस थी जो छ: फीट लंबी लेंस वाली टेलीस्कोप के बराबर था। यहां पर बताना उचित है कि करीब इसी प्रकार की डिजाइन न्यूटन के पहले सेंट एंड्रयूज युनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर जेम्स ग्रेगरी (James Gregory) ने बनाया था मगर कुशल कारीगर के अभाव में वे टेलीस्कोप नहीं बना सके थे [3]। प्रोफेसर बैरों के सुझाव पर न्यूटन ने दो इंच व्यास और आठ इंच लंबी एक दूसरी टेलीस्कोप बनाया जिसका प्रदर्शन लंदन में 1671 की रायल सोसायटी की मीटिंग के दौरान किया गया। इस मीटिंग में प्रकाशिकी के बड़े बड़े विद्वान एकत्रित थे और न्यूटन को तुरन्त रायल सोसायटी का फेलो चुन लिया गया था।
चित्र 4. सुदूर आकाशीय पिंडों से आने वाले प्रकाश को लेंस द्वारा फोकस करने में अपवर्तन के कारण प्रकाश क्षीण हो जाता है तथा प्रिज्म की तर्ज पर रंगीन होकर फैल जाता है। उसी प्रकाश को अवतल या पैराबोली दर्पण द्वारा फोकस करने में परावर्तन की प्रक्रिया की वजह से लेंस वाले दोष दूर हो जाते हैं और प्रतिबिंब साफ तथा चमकदार बनता है। (Adoptrd from Ref. 2)
चित्र 5. परावर्तन आधारित टेलीस्कोप (Reflecting Telescope) की डिजाइन जिसमें मुख्य पैराबोली दर्पण टेलीस्कोप में दाहिनी ओर है। चित्र में बायी ओर से आने वाला प्रकाश पैराबॉली दर्पण से फोकस के बाद एक छोटे अवतल दर्पण से परावर्तित होकर प्रतिबिंब, मुख्य दर्पण के बीच छेद से बाहर निकल कर दाहिनी ओर बनाता है।
चित्र 6. न्यूटन की टेलीस्कोप ((Adopted from Ref. 3)
सेव के पेड़ से गिरता फल और चन्द्रमा की गति
एक मशहूर कहानी के अनुसार, किसी मित्र के पूछने पर कि उन्हें गुरुत्वाषर्ण का ज्ञान कैसे हुआ, न्यूटन ने कहा था कि बुबानिक प्लेग के समय जब वह अपने गांव के बगीचे में बैठे थे तो सेव के पेड़ से फल को गिरते देखकर उन्हें गुरुत्वार्षण के बल का पता चला था। यहां ध्यान देने वाली बात है कि अगले बीस वर्षों तक उन्होंने इसके बारे में किसी को भी नहीं बताया था। जैसा कि हम उपर जिक्र कर चुके हैं, न्यूटन किसी भी समस्या के बारे में तब तक लगातार सोचते और पढ़ते रहते थे जब तक कि समस्या के हल करने का रास्ता उन्हें नहीं सूझ जाता था। जर्मन खगोल विज्ञानी केप्लर ने मंगल ग्रह की गति के बारे में अपने तथा अन्य लोगों द्वारा एकत्रित डाटा का बीस वर्ष तक अध्ययन एवं गणना करने के बाद 1609 में यह निष्कर्ष निकाला था कि मंगल ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते समय एक अंडाकार कक्षा (elliptical orbit) में गतिशील रहता है। बाद में उसने ग्रहों की सूर्य की कक्षा में घूमने के बारे में तीन नियम दिए थे जो शुद्ध रूप से पर्यवेक्षण (observations) पर आधारित थे। न्यूटन को केप्लर के काम के अलावा गैलीलियो द्वारा पीसा की टेढ़ी मीनार से किए प्रयोग के आधार पर यह भी पता था कि मुक्त रूप से पृथ्वी पर गिरने वाली गेंद एक सेकेंड में 16 फीट की दूरी तय करती है। अत: न्यूटन को यह ज्ञान था कि पृथ्वी तथा अन्य आकाशीय पिंडों में एक प्रकार के आकर्षण बल की क्षमता विद्यमान है। जिस समस्या के समाधान के बारे में वे गहन सोच में डूबे रहते थे उनमें एक यह था कि इस बल पर दूरी का क्या प्रभाव पड़ता होगा। दूसरी समस्या यह थी कि पृथ्वी का आकर्षण बल चन्द्रमा की सतह पर लगता है, या उसके केंद्र पर लगता है अथवा बीच के किसी बिंदु पर लगता है। इस सोच विचार के दौरान उन्हें दीकर्त (Descartes) की इस अवधारणा का बराबर ख्याल रहा कि ब्रह्माण्ड में कोई भी घटना या प्रक्रिया होने का मूल कारण पदार्थ के कणों के बीच परस्पर लगने वाला बल है। न्यूटन, राबर्ट ब्वॉयाल द्वारा रसायन विज्ञान में किए जाने वाले शोध के बारे में भी जानकारी रखते थे जहां अणु के स्तर पर रासायनिक क्रियाओं की व्याख्या हो रही थी।
न्यूटन की इस बृहद जानकारी तथा उनकी सोचने की अपूर्व क्षमता के आलोक मै यह अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि बुबॉनिक प्लेग के समय उन्हें अचानक गुरुत्वार्षण बल के समाधान की कोई राह दिखाई पड़ी होगी जिस पर वे अगले बीस वर्षों तक काम करते रहे। बचपन से ही अकेला रहने की आदत से वे अपने शोध की बातें किसी से साझा नहीं करते थे क्योंकि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपनी आलोचना उनके बरदाश्त से बाहर थी। दो उदाहरण से उनके द्वारा अपनी जानकारी को छुपाकर रखने की बात साफ हो जाती है। उस समय के विख्यात खगोलविद हैली ने 1684 में उनसे कैम्ब्रिज में मिलने पर पूछा था कि अगर सूर्य और किसी ग्रह के बीच का आकर्षण बल उनकी दूरी के वर्ग के व्युतक्रमानुपाती हो तो ग्रह के कक्षा की आकृति क्या होगी। इसके जवाब में न्यूटन ने तपाक से बताया कि ग्रह की कक्षा अंडाकार होगी और चित्र 7 के अनुसार गणना करने पर चन्द्रमा एक सेकेंड में पृथ्वी की तरफ सोलह फीट गिरता हुआ प्रतीत होगा। अत: गुरुत्वार्षण का जो बल सेव के फल को पृथ्वी पर गिराता है वहीं बल चन्द्रमा को पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिये भी बाध्य करता है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि तब तक प्रिंसीपिया का प्रकाशन नहीं हुआ था और न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गुरुत्वाकर्षण के नियम की जानकारी किसी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं थी।
चित्र 7. न्यूटन द्वारा दिए गये गति के पहले नियम के अनुसार नीरव आकाश में बिना किसी बाधा के, मुक्त आकाशीय पिंडों को एक समान गति से चलते रहना चाहिए। इस तथ्य के आधार पर पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण बल की अनुपस्थिति में, गतिमान चन्द्रमा एक समान गति (constant velocity) से सीधी रेखा में तीर द्वारा दर्शाए मार्ग ‘m’ पर पृथ्वी से दूर निकल जाता। मगर पृथ्वी के केंद्र की ओर गुरुत्वार्षण बल द्वारा उसी दिशा में उत्पन्न एक समान त्वारण (constant acceleration) के प्रभाव में चन्द्रमा पृथ्वी की ओर वैसे ही गिरने लगता है जैसे सेव के पेड़ से फल जमीन पर गिरता है और अंडाकार मार्ग (elliptical path) पर पृथ्वी का चक्कर लगाने लगता है। (Adopted from Ref. 2)
केप्लर, गैलीलियो और गुरुत्वाकर्षण नियतांक
न्यूटन की बीस वर्ष की चुप्पी के दौरान उनकी गुरुत्वाकर्षण के बारे में शुरू की अंतर्दृष्टि (insight) पक्की होती रही तथा अंत में परिष्कृत होकर एक व्यापक प्रणाली (comprehensive system) के रूप में उनकी लिखी प्रिंसीपिया नामक किताब द्वारा वैज्ञानिक जगत में प्रस्तुत की गई। इसमें न्यूटन ने केप्लर और गैलीलियो से एक कदम आगे बढ़कर अपने द्वारा प्रतिपादित तीन नियम (law) प्रस्तुत किया जिसने इन दोनों महान गणितज्ञों के निष्कर्ष की जगह ले लिया। केप्लर द्वारा ग्रहों के सूर्य के चारों ओर घूमने के तीन नियम प्रतिपादित किए गए थे :
#1 ग्रह सूर्य के चारों ओर एक अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाते हैं जिसके एक फोकस पर सूर्य स्थित होता है।
#2 ग्रह को सूर्य से जोड़ने वाली सीधी रेखा उसके चक्कर लगाने के दौरान बराबर समय में बराबर क्षेत्रफल वाले त्रिभुज की शक्ल का निर्माण करती है।
#3 ग्रह द्वारा अपनी कक्षा का एक चक्कर पूरा करने में लगे समय का वर्ग सूर्य से उसकी औसत दूरी के क्यूब के समानुपाती होता है।
गैलीलियो ने पीसा की मीनार से अपने प्रयोग द्वारा सिद्ध कर दिया था कि पृथ्वी पर गिरने वाली वस्तुओ में एक समान (uniform) त्वरण होता है और उनका परिपथ एक पैराबोला होता है। चित्र 2 तथा समीकरण (2) के माध्यम से यह दोनों तथ्य स्पष्ट किए गए हैं।
गैलीलियो द्वारा प्रथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में वस्तुओं के गति के नियम तथा केप्लर द्वारा सूर्य के गुरूत्वाकर्षण में ग्रहों की गति के नियम को लेते हुए गुरूत्वाकर्षण के सार्वभौमिक नियम की खोज न्यूटन की अप्रतिम प्रतिभा का अनूठा उदाहरण है। उनके दिमाग में केप्लर के नियम छात्र जीवन से ही घर कर गए थे अत: शुरु में उन्होंने बल के व्युत्क्रम वर्ग नियम और केप्लर के पहले तथा तीसरे नियमों के बीच सम्बन्ध की जानकारी प्राप्त किया था। अपने गांव के बगीचे में सेव को पेड़ से गिरते देखकर गुरुत्वाकर्षण के बारे में न्यूटन के मन में जो धारणा बनी वह एक ऐसे बल की थी जिसके कारण चन्द्रमा पृथ्वी की कक्षा में, तथा ग्रह सूर्य की कक्षा में, पकड़ लिए गए थे। यह बोध होना कि जो नियम पृथ्वी पर लागू होते हैं वहीं नियम ब्रह्मांड के लिए भी सही हैं, न्यूटन की विलक्षण अंतर्दृष्टि द्वारा ही संभव था। उनके इस साहसिक कदम से मनुष्य की समझ अचानक केवल पृथ्वी तक सीमित न होकर पूरे ब्रह्माण्ड तक फैल गई। केप्लर के गति के नियमों से केवल यह पता चलता था कि सौर मण्डल में आकाशीय पिंड किस प्रकार से गतिमान हैं। न्यूटन के नियमों ने यह बता दिया कि ब्रह्माण्ड में विभिन्न प्रकार के पिंड क्यों गतिमान हैं।
न्यूटन ने अपनी खोज को बीस वर्षों तक क्यों नहीं प्रकाशित किया इसके बारे में विद्वानों के कई मत हैं। एक मत के अनुसार उन्हें शुरू में लगा कि गुरुत्वाकर्षण केवल पृथ्वी तक सीमित है। बाद में जब इस बल का प्रयोग वे पृथ्वी से बाहर के पिंडों पर करना चाहे तो उसके गणतीय हल ढूंढने में उन्हें बहुत समय लग गया। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल वास्तव में कैसे कार्य करता है? क्या यह चन्द्रमा को उसके केंद्र से आकर्षित करता है या उसकी सतह से या किसी बीच के भाग से। अपने द्वारा इजाद किए गए कालकुलस के तरीकों को जब तक इस प्रकार की गणना के लिए उन्होंने परिष्कृत नही कर लिया तब तक अपनी खोज को प्रकाशित करना उचित नहीं समझा। कुछ अन्य लोगों के मतानुसार न्यूटन की चुप्पी का केवल यही कारण नहीं था। वह अपनी धारणा का दूसरो द्वारा मित्रवत भाव से भी खंडन नहीं बर्दाश्त कर पाते थे। ऐसी परिस्थिति में वे बेकाबू क्रोध से ग्रसित हो जाते थे। अत: अपने समय के वैज्ञानकों के सवालों का सामना करने के बजाय वे अपनी खोजों को अपने तक ही सीमित रखते थे।
न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गति के तीन नियमों में से पहला जड़ता (inertia) के सिद्धांत के अनुसार एक सी स्थिति बनाए रखने का है। इसके अनुसार कोई भी वस्तु स्थिर रहेगी या एक समान गति से सीधी रेखा में चलती रहेगी जब तक उस पर कोई बाहरी बल नहीं लगता है।
न्यूटन के गति का दूसरा नियम बल की परिभाषा व्यक्त करता है। इसके अनुसार किसी चलायमान वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस पर लगने वाले बल के समानुपाती होता है। इसका अर्थ हुआ कि किसी स्थिर या एक समान (uniform) गति से चलायमान वस्तु पर लगातार लगने वाला बल उसमे त्वरण उत्पन्न करता है। गैलीलियो ने इस नियम की खोज पीसा की मीनार से गेंद गिराने के प्रयोग द्वारा किया था।
न्यूटन के गति के तीसरे नियम के अनुसार अगर एक वस्तु दूसरे पर कोई बल लगाती है तो दूसरी भी इस बल के बराबर मान का बल उल्टी दिशा में पहली वस्तु पर लगाती है।
इन तीन मूल नियमों के उपयोग से न्यूटन ने दो पिंडों या दो वस्तुओं के बीच लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल का मान निकालने में सफलता प्राप्त की। गुरुत्वाकर्षण बल दो पिंडों के द्रव्यमान के गुणन फल के समानुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युतक्रमानुपाती होता है:
F = G (m1m2/d2) (6)
जहां F गुरुत्वाकर्षण का बल है m1 और m2 दोनों पिंडों के द्रव्यमान तथा d उनके केन्द्रों के बीच की दूरी है। G को गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहा जाता है।
न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण द्वारा उत्पन्न गति की जानकारी एक झटके में नहीं हो गई बल्कि इस समस्या के समाधान के लिए वे क्लिष्ट गणित का सहारा लेकर अन्तिम पड़ाव पर पहुंचे थे। न्यूटन के करीब सौ वर्ष बाद सनकी किस्म के ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी, कैवेंडिश (Cavendish), ने प्रयोगशाला में गुरुत्वाकर्षण नियतांक G का मान निकालने मै सफलता पायी थी ।
प्रिंसीपिया (Principia) और आपटिक्स (Opticks) के प्रकाशन
एडमंड हैली (Edmund Halley) का जन्म लंदन में 8: नवम्बर 1656 को हुआ था और अपने आक्सफोर्ड के छात्र जीवन में ही उनका परिचय इंग्लैंड के प्रथम एस्ट्रोनॉमर रायल जॉन फ्लैमस्टीड (John Flamsteed) से हो गया था। उन्होंने 1676 से 1678 तक दक्षिण अटलांटिक के सेंट हेलेना टापू पर रहकर टेलीस्कोप द्वारा दक्षिणी गोलार्द्ध के तारों का एटलस बनवाया था। उन्हें इस महत्वूर्ण कार्य के लिए 22 वर्ष की उम्र में ही रायल सोसायटी का फेलो चुन लिया गया। उन्होंने 1337 से 1698 के बीच खगोलविदों द्वारा देखे गए 24 पुच्छल तारों की पैराबोलिक कक्षाओं का गहन अध्ययन किया तथा यह पाया कि 1531, 1607 और 1682 में दिखने वाला एक ही पुच्छल तारा था और 1758 में उसके पुन: लौटने की भविष्य वाणी कर दिया। हैली को फ्लैमस्टीड की मृत्यु के बाद 1729 में एस्ट्रोनॉमर रायल बनाया गया और इस पद पर वे 1742 में अपनी मृत्यु तक बने रहे, मगर अपने नाम के मशहूर पुच्छल तारे का 1758 का आगमन नहीं देख सके। प्रिंसीपिया के प्रकाशन में जितना योगदान न्यूटन का है उससे थोड़ा ही कम योगदान हैली का है।
हैली न्यूटन से मिलने पहली बार 1684 में कैम्ब्रिज आए थे तथा न्यूटन को उनके आकाशीय यांत्रिकी (celestial mechanics) के शोध पर एक किताब लिखने को राजी करने की भरपूर कोशिश किए थे। हैली के आग्रह को स्वीकार करते हुए न्यूटन ने Mathematical Principles of Natural Philosophy के नाम से तीन भाग में किताब लिखने का काम शुरू किया। इस किताब को संक्षिप्त नाम प्रिंसीपिया (Principia) दिया गया। न्यूटन ने अपने स्वभाव के अनुकूल अगस्त 1684 से अप्रैल 1686 के बीच पूरे जुनून के साथ काम करते हुए प्रिंसीपिया के दो भाग का लेखन पूरा कर लिया। हैली ने रायल सोसायटी में अपने क्लर्क होने के सीमित अधिकार का प्रयोग करते हुए प्रिंसीपिया के प्रकाशन के लिए अथक परिश्रम किया। राबर्ट हूक के विरोध के बावजूद रायल सोसायटी के सदस्यों ने प्रिंसीपिया के प्रकाशन की अनुमति देने के साथ ही हैली को उसके प्रकाशन का इंचार्ज बना दिया। उस समय रायल सोसायटी की वित्तीय हालत इतनी कमजोर हो गई कि 1687 में हैली को प्रिंसीपिया के संपादन की जिम्मेदारी के साथ ही उसके प्रकाशन में अपना पैसा भी लगाना पड़ा। अंत में 5 जुलाई 1687 को प्रिंसीपिया प्रकाशित हो गई और उसका पहला संस्करण जल्दी ही बिक गया, जिसकी वजह से हैली का अपना पैसा वापस मिल गया। हैली के लिए सबसे अधिक गर्व और संतोष की बात न्यूटन द्वारा अपने प्रति आभार का प्रदर्शन था। न्यूटन ने लिखा था, "In the publication of this work the most acute and universally learned Mr Edmund Halley not only assisted me in correcting the errors of the press and preparing the geometrical figures, but it was through his solicitation that it came to be published."[3]। हैली ने न्यूटन को राजी कर प्रिसिपिया के रूप में लोगों के लिए वैज्ञानिक साहित्य की अति उत्कृष्ट कृति उपलब्ध करा दिया। करीब 500 पृष्ठों की इस किताब मै 340 ज्यामितीय चित्र हैं जिनमें से कुछ बहुत ही उलझे किस्म के है।
अपनी युवावस्था में रंग के सिद्धांत और प्रकाशिकी के अन्य पहलू पर न्यूटन के रॉबर्ट हूक से बहुत मतभेद थे। बहस से छुटकारा पाने के लिए न्यूटन ने प्रकाशिकी में अपने शोध कार्यों के बारे में तीस साल तक बिलकुल चुप्पी साध लिया था। अपने मुख्य प्रतिद्वंदी हूक की 1703 में मृत्यु के बाद ही ऑप्टिक्स (Opticks) 1704 में प्रकाशित हुई। ऑप्टिक्स और प्रिंसीपिया के प्रस्तुतिकरण में बहुत फर्क है। ऑप्टिक्स अंग्रेजी में लिखी गई है और उसमें गणित के बोझिल तर्क वितर्क की कमी है जबकि प्रिंसीपिया में लैटिन के शब्द और क्लिष्ट गणित की भरमार है। ऐसा लगता है कि ये दोनों किताबे दो अलग अलग व्यक्ति द्वारा लिखी गई हैं। यहां जानकारी देना जरूरी है कि प्रिसीपिया लिखने के समय न्यूटन कैम्ब्रिज में थे और ऑप्टिक्स लिखते समय वह लंदन में रहने लगे थे। शायद दोनों किताबों की प्रस्तुतिकरण का अंतर दो शहरों के वातावरण में भिन्नता के कारण हो जिससे प्रभावित होकर कैम्ब्रिज की एकाकी में रहने वाले न्यूटन अब लंदन के खुलेपन के आदी हो गए थे ।
न्यूटन के मददगार
सर आइजैक न्यूटन के जीवन और कार्य के बारे में किताबों तथा लेखों के रूप में अपरिमित साहित्य उपलब्ध है जिसके अवलोकन से एक बात साफ हो जाती है कि वे ईश्वर में विश्वास करने वाले व्यक्ति थे। वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए उपकरण हो, या गणितीय विश्लेषण के लिए कालकुलस हो, अपनी जरूरत के साधन उन्होंने अकेले अपने बल पर ही उपलब्ध किया था। न्यूटन के इस स्वनिर्मित महान व्यक्तित्व के बावजूद उनके जीवन में कई ऐसे मौके आए जहां कुछ लोगों ने उनकी मदद नहीं की होती तो शायद विश्व उनके द्वारा विज्ञान और गणित में योगदान से वंचित रह जाता।
न्यूटन की मदद करने वालों में सबसे पहले दवाई विक्रेता क्लार्क का नाम लेना उचित लगता है जिनके घर रहकर उन्होंने ग्रामर स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। क्लार्क के घर में किताबों के विपुल भंडार से उनमें किताबें पढ़ने की आदत पैदा हुई। ट्रिनिटी कॉलेज में BA पास करने के बाद उनके फेलो चुने जाने में भी हमफरै बैबिंगटन (Humphrey Babington) मदद किए थे जो क्लार्क के रिश्तेदार थे [3]।
न्यूटन के मामा विलियम एस्काफ (William Ayscough) और ग्रामर स्कूल के मास्टर जॉन स्टोक्स (John Stokes) ने उनकी मां को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वे खेती छोड़कर वापस स्कूल की पढ़ाई पूरी करें। उनकी मां की इच्छा थी कि वे अपने पिता की तरह अनपढ़ न रहें और इसी वजह से उनको दूसरे गांव में स्थित ग्रामर स्कूल में भेजा गया था। मगर 100 एकड़ में फैले फार्म की देखरेख करने के लिए मा ने पढ़ाई रुकवा दी थी। अगर समय पर उनके मामा और स्कूल के टीचर मदद नहीं किए होते तो प्रतिभावान न्यूटन एक कृषक के रूप में अपना शेष जीवन व्यतीत कर देते।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में उनके गणित के प्रोफेसर आइजैक बैरों उन्हें अपने बेटे की तरह मानने लगे थे। उनकी अनोखी प्रतिभा को पहचान कर तथा उनके बाल्यावस्था में उपजे एकाकीपन का ख्याल रखते हुए वे ऐसी परिस्थिियों से उनको बचाते रहे जिससे न्यूटन निराशा के अन्धकार में डूब सकते थे। न्यूटन को लूकेशियन प्रोफेसर बनवाने तथा रायल सोसायटी का फेलो निर्वाचित होने में बैरों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। न्यूटन की ट्रिनिटी कालेज की फेलोशिप में एक शर्त थी कि उन्हें एंग्लिकन चर्च की विचारधारा से हमेशा सहमति जतानी होगी और अंत में एक पादरी बनना पड़ेगा। न्यूटन को एंगिल्कन चर्च के त्रिदेव (doctrine of the Trinity) में विश्वास नहीं था, फिर भी वे किसी प्रकार इसे प्रकट करने से बचते रहे। मगर 1675 में चर्च की धार्मिक व्यवस्था से बचने का न्यूटन के लिए कोई रास्ता नहीं था और उनको लूकेशियन प्रोफेसर का पद छोड़ना पड़ सकता था। ऐसे संकट के समय प्रोफेसर बैरों ने रॉयल चैपलिन के अपने विशिष्ट अधिकार का इस्तेमाल करते हुए लुकेशियन प्रोफेसर को चर्च के इस संस्कार से मुक्त करा दिया और न्यूटन का जीवन खुशहाल हो गया [3]।
न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण बल तथा सौर मण्डल के ग्रहों की गति के शोध कार्य को प्रकाशित करने के लिए राजी करना आसान काम नहीं था। कई मशहूर वैज्ञानिक इस प्रयत्न में असफल रहे थे, यहां तक कि प्रोफेसर बैरों के आग्रह को भी न्यूटन ने बड़ी शालीनता से अस्वीकार कर दिया था। एडमंड हैली ने न्यूटन को प्रिंसीपिया के माध्यम से अपने शोध कार्य को बीस वर्ष की चुप्पी तोड़कर प्रकाशित करने के लिए बड़ी खूबसूरती से राजी कर लिया था। उनको मालूम था कि न्यूटन किसी प्रकार की आलोचना नहीं पसंद करते थे। इसी वजह से 1684 की अपनी कैम्ब्रिज की पहली यात्रा में उन्होंने एक समस्या न्यूटन के सामने रखी, क्योंकि वे जानते थे कि न्यूटन किसी भी समस्या के समाधान में जी जान से लग जाते हैं। अपनी खगोलीय खोज (astronomical investigations) में आयी कठिनाई को सामने रखते हुए जब हैली ने पूछा कि व्युत्क्रम वर्ग नियम का पालन करने वाले बल (force following the inverse square law) के प्रभाव में किसी ग्रह की कक्षा का क्या आकार होना चाहिए, तो न्यूटन ने तुरन्त जवाब दिया कि वह अंडाकार ( ellipse) होगा। आश्चर्य का भाव प्रकट करते हुए जब हैली ने पूछा कि न्यूटन को यह जानकारी कैसे हुई तो उन्होने बताया कि वे इसकी गणना कर चुके हैं। जब हैली ने वह गणना देखने की इच्छा जाहिर की तो न्यूटन अपने कागजों में उसे तुरन्त ढूंढ नहीं पाए और उन्हें बाद में भेजने का वादा किया । कुछ महीने बाद जब हैली ने न्यूटन द्वारा भेजे पिंडों की कक्षा में गति (On the Motion of Bodies in Orbit) शीर्षक वाले लेख को पढ़ा तो उन्हें लगा कि न्यूटन ने आकाशीय यांत्रिकी की एक नई प्रणाली का इजाद कर लिया है जो केप्लर के तीनो नियमों को सैद्धांतिक आधार प्रदान करती है। अपनी दूसरे बार की कैम्ब्रिज यात्रा में हैली ने न्यूटन को उनके काम से भविष्य की वैज्ञानिक शोध को मिलने वाले लाभ के बारे में बताया तो न्यूटन उनकी निष्कपटता से प्रभावित होकर प्रिंसीपिया लिखने के लिए तैयार हो गए। हैली ने अपनी गरीबी की बिना परवाह किए प्रिंसीपिया के प्रकाशन में अपना खुद का पैसा लगाया था (3)। इस प्रकार हम देखते हैं कि हैली ने जिस बुद्धिमानी और निष्कपटता से न्यूटन की मदद की थी उसके अभाव में शायद लोग प्रिंसीपिया को नहीं देख पाते।
न्यूटन के प्रतिद्वंदी
न्यूटन के प्रतिद्वंदियों में रॉबर्ट हूक (Robert Hooke) इंग्लैंड में, और क्रिस्चियन हाईगेन (Christian Huygens) तथा गोत्तफ्रेड लेबनिज (Gottfried Leibniz) यूरोप में, उस समय के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में शुमार थे। इनमे विद्वता के लिहाज से हाइगेन उनकी बराबरी के थे जिन्होंने गणित में महत्वूर्ण योगदान के अलावा, पेंडुलम घड़ी का निर्माण, टेलीस्कोप और माइक्रोस्कोप की डिजाइन में महत्वूर्ण परिवर्तन के साथ ही यांत्रिकी में भी उल्लेखनीय काम किया था। न्यूटन की तरह हाईगेन भी अपने रिसर्च के परिणामों को प्रकाशित करने में बहुत हिचकिचाहट महसूस करते थे और करीब करीब अकेले शोध कार्य करते थे क्योंकि उनके शोध छात्रों की संख्या बहुत कम थी। न्यूटन के साथ इस तरह की समानता के बावजूद हाईगेन का प्रभाव केवल 17वीं सदी तक सीमित रहा। हाईगेन के अनुसार प्रकाश का प्रसार तरंगों के रूप में होता है, जो न्यूटन के प्रकाश के कणों के रूप में प्रसारण के विपरीत था। हाईगेन ने न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण के सिद्धांत को भी यह कहते हुए नकार दिया था कि वह कोरी गणित है और उसमें रचनातंत्र (mechanism) का बिलकुल अभाव है।
लेबनिज मुख्य रूप से एक गणितज्ञ थे और उनके दो उललेखनीय योगदान थे। उन्होंने न्यूटन की तरह ही स्वतंत्र रूप से कालकुलस की रचना की थी। उनके कालकुलस के आपरेशन प्रतीक (operation symbol) न्यूटन की अपेक्षा ज्यादा सहज थे और वर्तमान में भी प्रयोग में हैं। उस समय के वैज्ञानिकों के विपरीत लेबनीज कभी भी किसी शैक्षिक संस्थान (educational institution) से नहीं जुड़े रहे। उन्होंने एक राजनेता, एक वकील, एक समाज सुधारक तथा वंशावली विशेषज्ञ के रूप में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन किया था। 1696 में स्विट्जरलैंड के गणितज्ञ निकोलस फतिओ (Nicolas Fatio) ने लेबनिज़ द्वारा कालकुलस की रचना को न्यूटन की नकल घोषित कर दिया था। लीबनिज ने 1704 में फतियो के आक्षेप का प्रतिकार Acta Eruditorum नामक जर्नल में एक लेख के माध्यम से किया। इस प्रकार के गुमनाम आरोप प्रत्यारोप का दौर लिबनिज और न्यूटन की मृत्यु तक चलता रहा।
रॉबर्ट हूक, लंदन की रॉयल सोसायटी के संस्थापकों में से एक थे और 12 नवम्बर. 1661 को उन्हें सर्वसम्मति से सोसायटी का क्यूरेटर (Curator) नियुक्त किया गया था। उनका काम सोसायटी के तत्वाधान में वैज्ञानिक प्रयोगों को प्रस्तुत करना था। उन्हें मार्च 1664 में लंदन के सिटी कालेज (City College) द्वारा ज्यामिति के ग्रेशम प्रोफ़ेसर (Gresham Professor of Geometry) के सम्मानित पद पर नियुक्त किया गया जिसे उन्होंने जीवन पर्यन्त सुशोभित किया। एक वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने प्रकाशिकी (Optics), यांत्रिकी (Mechanics) और भूगर्भ विज्ञान (Geology) में उल्लेखनीय शोध कार्य किया। उन्होंने 1660 में स्प्रिंग (spring) के लचीलापन पर शोध के दौरान यह पाया कि एक हद तक उसके लम्बाई में परिवर्तन उस पर लगे तनाव के अनुपात में होता है और लचिलता या प्रत्यास्थता का नियम आज भी उनके नाम से प्रसिद्ध है। माइक्रोस्कोप से देखने पर सूक्ष्म जीवाणुओं की शारीरिक रचना पर आधारित 1665 में प्रकाशित होने वाली उनकी किताब माइक्रोग्राफिया (Micrographia) ने जीवाणु जनित रोगों के बारे में लोगों का बहुत ज्ञानवर्धन किया।
विशिष्ट गुणों के बावजूद रॉबर्ट हूक और आइजैक न्यूटन स्वभाव में एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत थे। अकेले रहकर सोच में डूबे रहने वाले अंतर्मुखी न्यूटन के विपरीत बहुर्मुखी हूक लोगों से घिरे रहने में आनन्द का अनुभव करते थे। जहां न्यूटन वर्षों तक विचारमग्न रहकर अपने द्वारा प्रतिपादित धारणा को प्रकाशित करने में हिचकिचाहट महसूस करते थे, हूक को जो भी वैज्ञानिक संभावना या विचार ठीक लगता था उसे तुरन्त प्रकाशित कर देते थे। दोनों के बीच विवाद का सूत्रपात न्यूटन द्वारा 1671 में रॉयल सोसयटी में प्रकाशित होने वाले शोध पत्र को लेकर हुआ जिसमें उन्होने अपने द्वारा निर्मित टेलीस्कोप से संबन्धित सिद्धांत की व्याख्या किया था [4]। न्यूटन के प्रकाश के कणों के सिद्धांत को नकारते हुए हूक ने हाईगेन के तरंग सिद्धांत को उचित ठहराया। जब न्यूटन ने प्रतिकार में यह लिखा कि उनकी विचरधारा प्रयोगों के आधार पर बनी है, तो हूक ने इस विवाद में हाईगेन को भी सम्मिलित कर लिया और न्यूटन के प्रायोगिक सबूतों के वजन को नकार दिया। 1686 में प्रिंसीपिया के प्रकाशित होने के बाद हूक ने यह दावा किया कि न्यूटन को बल के व्युत्क्रमण वर्ग के नियम को उन्होंने ने ही सुझाया था। न्यूटन ने हूक के दावे को सिरे से खारिज कर दिया था और दोनों के बीच कटुता बढ़ती गईं जो 1703 में हूक के मृत्यु तक जारी रही। यह भी अफवाह है कि रॉयल सोसायटी के प्रेसिडेंट मनोनीत किए जाने के बाद न्यूटन ने सोसायटी के प्रांगण में मौजूद राबर्ट हुक के एकमात्र चित्र को हटवा दिया था।
न्यूटन ने 1703 में रॉयल सोसायटी का प्रेसिडेंट चुने जाने के बाद वहां पर बहुत से सुधारवादी परिवर्तन किए। 1690 के आरम्भ से ही चुने जाने वाले प्रेसिडेंट रईस (aristocrat) लोग हुआ करते थे जो केवल नाममात्र के सभापति थे और सोसायटी की प्रगति बाधित हो गई थी। न्यूटन ने जल्दी ही सोसायटी का काया पलट दिया। उन्होंने सोसायटी की मीटिंग के दौरान विज्ञान के विभिन्न क्षेत्र - गणित, यांत्रिकी, एस्ट्रोनॉमी, प्रकशिकी, जीव विज्ञान तथा केमेस्ट्री में नवीनतम शोध कार्यों के प्रदर्शन की व्यवस्था कायम किया। रॉयल सोसायटी के लिए एक नया आवास स्थापित किया गया और हैली को सोसायटी का सेक्रेट्री नियुक्त किया गया। इस प्रकार सोसायटी के अधिकारों की बहाली से वह एक जीवंत संस्था के रूप में पुनर्जिवित हो गई।
न्यूटन और कीमिया (Alchemy)
19 वीं सदी में ब्रीस्टर (Brewster) द्वारा लिखी न्यूटन की बायोग्राफी में इस बात का उल्लेख है कि उनके द्वारा एकत्रित विशाल संग्रह में कीमिका (Alchemy) के बारे में बहुत सी किताबें, लैबोरेटरी नोटबुक तथा हस्तलिपि शामिल थे। लेखक ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि न्यूटन जैसे विकसित दिमाग वाला व्यक्ति किस प्रकार से टोना टोटका और जादूगरी जैसे विवरणों वाली इस विद्या से समन्वय स्थापित किया होगा। ब्रिस्टर द्वारा न्यूटन की जीवनी लिखे जाने के समय तक कीमिया का अंत हो गया था और आधुनिक रसायन पूर्ण रूप से विकसित हो गया था, जबकि न्यूटन के समय दोनों के बीच दरार की शुरुआत भर हुई थी। वर्तमान के केमिस्ट की तरह उस जमाने के अल्केमिस्ट एक प्रकार के पदार्थ का दूसरे पदार्थ में रूपांतरण की प्रक्रिया का गहन अध्ययन करते थे और इसके लिये जरूरी शर्तो (conditions) का विस्तार से उल्लेख करते थे। एक अल्केमिस्ट का अंतिम लक्ष्य धातुओं (metals) को सोने (gold) में परिवर्तित करना था।
कीमिया में न्यूटन की जिज्ञासा करीब तीस वर्षो तक बनी रही। उनके प्रयोगशाला की भट्टी दिन रात जलती रहती थी और न्यूटन की तल्लीनता से लगता था कि उनका लक्ष्य मानव कला और उद्योग से भी बड़ी चीज को प्राप्त करना था। यद्यपि न्यूटन को पदार्थ के रूपांतरण (transmutation) में सफलता नहीं मिली लेकिन उन्हें यह अंदाजा जरूर लगा कि इस प्रक्रिया में पदार्थों के कणों के बीच आकर्षण (attraction) और प्रतिकर्षण (repulsion) के बल क्रियाशील रहते थे। न्यूटन के लिए क्रूसिबल (crucible) में प्रकट होने वाला आकर्षण वैसा ही था जैसा गुरुत्वाकर्षण बल था। इस बात का कोई सबूत नहीं, लेकिन कुछ टिप्पणीकारों (commetators) का सोचना है कि इन दो विभिन्न प्रकार के बलों की समानता की वजह से न्यूटन के मन में सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण की विचारधारा का उदय हुआ होगा ना कि सेव के पेड़ से फल को गिरते देखकर।
न्यूटन का लंदन प्रवास
न्यूटन के जीवन के तीन सुस्पष्ट पड़ाव हैं: बाल्यावस्था से 1660 तक लिंकनशायर के ग्रामीण परिवेश के बाद वयस्कता से 30 वर्ष तक का समय कैम्ब्रिज के शैक्षिक माहौल में और प्रौढ़ अवस्था से मृत्यु पर्यन्त लंदन के सामाजिक - राजनीतिक वातावण में। जब 54वर्ष की आयु में उन्होंने कैम्ब्रिज छोड़कर लंदन में रहने का निर्णय लिया तो शायद उनको अहसास रहा होगा कि उनकी महान रचनात्मक क्षमता अपने ढलान पर पहुंच चुकी थी और उनकी तेजी से बढ़ती प्रसिद्धि के चलते उन्हें अधिक सुख सुविधा की जरूरत थी। 1696 में उनके एक पुराने विद्यार्थी, चार्ल्स मोंटेग्यू (Charles Montague) जो अब चांसलर ऑफ एक्सचेकर हो गए थे, ने उन्हें लंदन की टकसाल के वार्डन (Warden of the Mint) के पद पर मनोनीत किया । मोंटेग्यू ने न्यूटन से कहा कि इस पद पर वे अपनी इच्छानुसार अपना खाली समय इस काम में लगाने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन न्यूटन एक दूसरी मिट्टी के बने थे और किसी भी काम को, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, सतही ढ़ंग से करना उनके चरित्र में नहीं था।
न्यूटन ने इकोनॉमिक्स, कॉमर्स और फाइनेंस की किताबें खरीदा, टकसाल के लोगों से तीखे सवाल पूछे और मोटे मोटे नोटबुक तैयार किए। उस समय इंग्लैंड की मुद्रा और उसके साथ ही वहां का खज़ाना, संकट की दौर से गुजर रहे थे। उस समय दो प्रकार के सिक्के प्रचलन में थे, एक को सांचा में पीटकर बनाया जाता था जबकि दूसरे को मिलिंग मशीन (milling machine) द्वारा बनाया जाता था। पीटकर बनाए गए सिक्के को आसानी से कतर कर नकली सिक्के बना लिए जाते थे जिनकी कीमत मशीन से बने सिक्कों से कम थी। इस प्रकार पीटकर बने सिक्के प्रसार में रहते थे और मशीन वाले सिक्कों की जमाखोरी होने लगी थी। इस ख़तरनाक समस्या के निवारण के लिए न्यूटन के आने के पहले ही आदेश दिए जा चुके थे। यद्यपि सिक्का - ढलाई वार्डन की जिम्मेदारी नहीं थी मगर न्यूटन तुरन्त ही इस चुनौती पूर्ण समस्या के समाधान में जुट गए और एक साल के भीतर ही नकली सिक्के की समस्या काबू में आ गई। जब 1699 में टकसाल के मास्टर की मृत्यु हुई तो न्यूटन ने उनकी जगह ले ली तथा 1627 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे।
न्यूटन को राजनीति में बहुत दिलचस्पी नहीं थी, मगर समय के साथ बदलती परिस्थितियों के प्रवाह में वे दो बार अल्पकाल के लिए ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य बने थे। इंग्लैंड की पार्लियामेंट में व्हिगस (Whigs) एक राजनीतिक दल था जो 1680 से 1850 तक टोरीज (Tories) दल के खिलाफ चुनाव लड़ता रहा। अपरिवर्तनवादी (conservative) टोरिज के विपरीत व्हिग्स पार्टी इंग्लैंड में राजा द्वारा निरंकुश शासन के खिलाफ थी और 1688 में बिना किसी खून खराबा के तत्कालीन रोमन कैथोलिक राजाओं को पदच्युत करने में उसकी अहम भूमिका रही। न्यूटन को पहली बार 1689 के चुनाव में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से व्हिगस पार्टी की ओर से पार्लियामेंट का मेम्बर चुना गया था। यद्यपि न्यूटन कम बोलते, हमेशा विचारमग्न रहते और अपनी बात बेबाक कहने के आदी थे जो एक राजनीतिज्ञ के लिए बहुत अच्छा नहीं था, फिर भी खास मौकों पर उनकी बौद्धिक शक्ति का लाभ उनकी पार्टी को मिलता था। एक वर्ष तक हाउस ऑफ कॉमन्स में रहकर अपनी पार्टी को संवैधानिक संकट से उबारने के बाद उन्होंने 1690 में दुबारा चुनाव में भाग नहीं लिया। 1701 में उन्होंने दूसरी बार चुनाव लड़कर टोरिज के मजबूत कैंडिडेट (candidate) के खिलाफ जीत दर्ज किया तथा पार्लियामेंट में बहस के दौरान नकली सिक्के बनाए जाने के खिलाफ बिल लाकर कानून बनवाने में सफल रहे। न्यूटन के राजनीतिक कद को बढ़ाने के उद्देश्य से 15.अप्रैल 1705 को इंग्लैंड की महारानी एन्न (Queen Ann) ने उन्हें ट्रीनिटी कालेज में नाइट की पदवी (Knighthood) से अलंकृत किया और अब वे सर आइजैक न्यूटन के नाम से विख्यात हो गए।
न्यूटन अंतिम समय में अपनी मां की सेवा करने के लिए 1679 में वुलस्थोरप गए थे जहां 4 जून को उनके मा की मृत्यु हो गयी। कई महीने वहां पर रुक कर उन्होंने पारिवारिक मामलों का निपटारा करते हुए अपनी संपत्ति का बंटवारा अपने संबंधियों के बीच कर दिया था। न्यूटन जीवन पर्यन्त अविवाहित रहे। उनके मास्टर ऑफ मिंट बनने के बाद 1700 के आसपास उनकी सौतेली बहन हाना स्मिथ (Hannah Smith) की 1679 में जन्मी बेटी कैथरीन बर्टन (Catherine Barton) उनके साथ रहने के लिए लंदन में आ गई थी। 1717 में कैथरीन का विवाह जॉन कोंड्यू (John Conduit) के साथ हो गया और एक दिसम्बर 1718 को न्यूटन की अनुशंसा पर कॉड्यू को रॉयल सोसायटी का फेलो चुन लिया गया था। अपने अंतिम दिनों में सर आइजेक न्यूटन अपनी भतीजी कैथरीन और उसके पति के साथ क्रानबरी (Cranbury) में आकर रहने लगे थे। 19 फरवरी 1727 को रॉयल सोसायटी की मीटिंग में अपनी आखिरी अध्यक्षता करने के कुछ ही दिन बाद मूत्राशय की पथरी के कारण न्यूटन शय्याग्रस्त हो गए। उन्होंने अपने अंतिम संस्कार से इन्कार कर दिया और 20 मार्च 1727 को नींद में ही उनका देहावसान हो गया। न्यूटन ने कोई वसीयतनामा (will) नहीं छोड़ रखा था, इस वजह से उनकी पैतृक संपत्ति उनके चाचा के पर-पोते (great grandson) जॉन न्यूटन ( John Newton) को चली गई। उनके द्वारा बैंक में जमा करीब 32 हजार ब्रिटिश पौंड का बंटवारा उनके सौतेले भाई और सौतेली बहनों के बच्चों के बीच हो गया जिसमें से एक कैथरीन भी थी जिसके पति जॉन कंड्यू न्यूटन के बाद रॉयल मिंट के मास्टर नियुक्त किये गये। न्यूटन के सभी रीसर्च के कागजात कैथेराइन बर्टन और जॉन कन्ड्यू के जिम्मे कर दिये गये और जॉन कंड्यू ने ही सर्वप्रथम न्यूटन की बायोग्राफी लिखा था।
न्यूटन को लंदन के वेस्टमिंस्टर चर्च (Westmister Abbey) में दफन कर दिया गया। उनकी अंत्येष्ठि में शामिल सभी पार्टियों के नेता तथा सभी विचारधारा के संभ्रांत लोग अपने समय के सबसे महान व्यक्ति के निधन पर विलाप (lament) कर रहे थे। उस समय के प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक और फिलासफर, वाल्टेयर (Voltaire) ने, जो उस समय लंदन में थे और उनकी अंत्येष्ठि में उपस्थित होकर कहा था, "न्यूटन, साधारण मनुष्यों की कमजोरियों से मुक्त, बिना किसी वासना के शिकार हुए, एक अति महान व्यक्ति थे ऐसा हमें उनकी देखरेख करने वाले चिकित्सकों और शल्य चिकित्सकों ने बताया है”[5]। न्यूटन के ही कद के सिद्धांतवादी (theoretician), महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने अध्ययन कक्ष (study) की दीवार पर माइकल फैराडे और जेम्स क्लर्क मैक्सवेल के बगल में न्यूटन का चित्र लगा रखा था। इस बात में कोई संशय नहीं कि न्यूटन के समान रचनात्मक प्रतिभा का धनी कोई भी भौतिक विज्ञानी नहीं हुआ है। सर्वोत्कृष्टता के शिखर पर आसीन, आइंस्टीन, मैक्सवेल, बोल्ट्जमान, गिब्स और फाइनमैन में से किसी में भी न्यूटन की भांति सिद्धांतवादी, प्रयोगवादी तथा गणितज्ञ की संयुक्त उपलब्धियों देखने को नहीं मिलती हैं।
Acknowledgements
During the school-break just before the Christmas of 2019, I went to the San Leandro Public Libray with my grandchildren. I came across an excellent book by Paul Strathem, that I had not seen before. The presentation about Newton’s life and work, inspired me to write this article in Hindi for the benefit of school children in India. I dedicate it as my tribute to Sir Isaac Newton on the occasion of his 377th Birthday and as a mark of my affection to Leo and Mia.
References
Newton I., Phil. Trans. R. Soc. London, 80 (1672) 3075
P. Strathern, The Big Idea: Newton and Gravity, Anchor Books, New York (1998)
W.H. Cropper, Great Physicists, Oxford University Press, New York (2004)
Fara, P., Phil. Trans. R. Soc. A 373 (2015) 20140213
Isaac Newton, From Wikipedia, the free encyclopedia
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